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भोजपुरी फिल्मों के जनक नज़ीर हुसैन
News Date:- 2024-06-29
भोजपुरी फिल्मों के जनक नज़ीर हुसैन
vaishali jauhari

लखनऊ,29 Jun 2024

नज़ीर हुसैन, देश की आज़ादी के मतवाले, उम्दा कलाकार के साथ-साथ भोजपुरी फिल्मों के जनक

संघर्षमय जीवन की शुरुआत:

नज़ीर हुसैन का जन्म 15 मई 1922 को उत्तर प्रदेश के उसिया गांव में हुआ था. पिता शहबज़ाद खान इंडियन रेलवे में गार्ड के पद पर तैनात थे। पिता की सिफारिश से नज़ीर को रेलवे में फायरमैन की सरकारी नौकरी तो मिल गई लेकिन मन नहीं लग रहा था. लिहाज़ा कुछ महीने बाद नौकरी छोड़ उन्होंने ब्रिटिश आर्मी ज्वाइन कर ली. ये वो दौर था जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था. परिस्थितियों को देखते हुये उन्हें मलेशिया और सिंगापुर में तैनात किया गया. हालात और खराब होते गये. इसी दौरान उन्हें बंदी बना लिया गया. मगर कुछ समय बाद उन्हें रिहा कर भारत वापिस भेज दिया गया.

आज़ादी की लड़ाई और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का साथ:

भारत लौटने के बाद नज़ीर का मन अब अंग्रेजों की गुलामी से भर चुका था. सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर वे “आज़ाद हिंद फौज” की सेना में एनआईए के रैंकों में शामिल हो गए. बचपन से ही नज़ीर को लिखने का शौक था. उनके इसी हुनर को देखते हुये सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें प्रचार-प्रसार और लेखन का काम सौंप दिया.

मौत की झूठी खबर:

एक बार जब अंग्रेजों के खिलाफ आवाज़ उठाने पर “आज़ाद हिन्द फौज” के शूरवीरों को जेल में डाल दिया गया, उनमें नज़ीर भी शामिल थे. देश के हालात बेहद खराब थे. कई दिन तक तो नज़ीर को भी बंदी बनाकर रखा गया. इसी बीच खबर फैल गई कि अंग्रेजों ने नज़ीर को मार दिया. बस क्या था पूरे गांव और परिवार में मातम छा गया. समय बीतता गया और घरवालों ने उन्हें शहीद समझ लिया.

इस बीच एक दिन अंग्रेज नज़ीर को ट्रेन से हावड़ा से दिल्ली लेकर जा रहे थे. बड़ी ही चालाकी के साथ नज़ीर ने एक चिट्ठी लिखी और जैसे ही दिलदार जंक्शन आया, उन्होंने वो चिट्ठी स्टेशन पर फेंक दी. किस्मत से वो चिट्ठी उसिया गांव के एक आदमी के हाथ लग गई और उसने पूरे गांव में खबर फैला दी कि नज़ीर अभी जिंदा हैं.

कुछ महीनों बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ और स्वतंत्रता की लड़ाई में बंदी बनाये गये भारतीयों को रिहा कर दिया गया. स्वतंत्रता सेनानी होने पर नज़ीर हुसैन को आजीवन रेलवे का फ्री पास मिला. जो उस दौर के लिए बड़ी बात थी.

नाटक लेखन से फिल्मों तक का सफर:

आज़ादी के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाई शरत चंद्र बोस की मदद से नज़ीर ने नाटक लिखने शुरू किये. उनके नाटक हिट होने लगे और उन्हें बी.एन. सरकार के साथ काम करने का मौका मिला. यहीं से उनकी सिनेमा के क्षेत्र की नई पारी की शुरूआत हुई. नज़ीर के काम से प्रभावित होकर बिमल रॉय ने उन्हें (1950) में आई अपनी फिल्म 'पहला आदमी' के लिए स्टोरी लिखने का काम सौंपा.

फिल्मी सफर और योगदान:

नज़ीर हुसैन ने हिंदी सिनेमा में करीब 500 फिल्मों में काम किया. उन्होंने मुख्यतः पिता, दादा और चाचा जैसे किरदार निभाये. उनकी प्रमुख फिल्मों में 'परिणीता' (1953), 'दो बीघा जमीन' (1953), 'देवदास' (1955), 'नया दौर' (1957), 'साहिब बीवी और गुलाम' (1962), 'कटी पतंग' (1970), और 'मेरे जीवन साथी' (1972) जैसी कई हिट फ़िल्में शामिल हैं.

भोजपुरी सिनेमा की नींव:

1960 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद से नज़ीर हुसैन की मुलाक़ात एक कार्यक्रम के दौरान हुई. डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने नज़ीर के सामने भोजपुरी भाषा में फिल्में बनाने का प्रस्ताव रखा. बस फिर क्या था उन्होंने पहली भोजपुरी फिल्म “गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ाइबो (1963) बनाई, यहीं से भोजपुरी सिनेमा की नींव रखी गई.

नज़ीर ने खुद इस फिल्म की कहानी लिखी और स्क्रीनप्ले तैयार किया. जब फिल्म बनी तो एक स्पेशल स्क्रीनिंग रखकर इसे सबसे पहले डॉ.राजेंद्र प्रसाद को ही दिखाया गया. अपनी पहली फिल्म की कामयाबी के बाद नज़ीर हुसैन भोजपुरी सिनेमा में ही काम करने लगे.1979 में रिलीज़ फिल्म ‘बलम परदेसिया’ आज भी भोजपुरी सिनेमा की बेंचमार्क मानी जाती है.

भोजपुरी फिल्मों के साथ-साथ नज़ीर ने कई हिंदी फिल्में जैसे कश्मीर की कली, गीत, अमर अकबर एंथोनी, द बर्निंग ट्रेन, असली नकली जैसी और भी हिट फिल्मों में उम्दा अभिनय किया.

सम्मान और पहचान:

अपने 37 साल के लम्बे करियर में नज़ीर ने लगभग 500 फिल्मों में काम किया, स्क्रीनप्ले तैयार किये, डायलॉग्स लिखे और भोजपुरी सिनेमा की नींव रखी. बावजूद इसके नज़ीर हुसैन को कोई बड़ा सम्मान नहीं मिला. उसिया गांव में आज भी उनका पुराना घर है जहां अब स्कूल बन चुका है.

नज़ीर हुसैन की कहानी एक सच्चे संघर्षशील और प्रतिभाशाली कलाकार की कहानी है जिसने समाज और सिनेमा के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया.

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