होम

शॉर्ट्स

देखिये

क्विज

फ़ास्ट न्यूज़


सुरों के बेताज बादशाह मुकेश: संघर्ष से सफलता तक का कारवाँ
News Date:- 2024-08-16
सुरों के बेताज बादशाह मुकेश: संघर्ष से सफलता तक का कारवाँ
vaishali jauhari

लखनऊ,16 Aug 2024

फिल्म संगीत का स्वर्ण युग: गायक कलाकार मुकेश

मुकेश चन्द माथुर हिंदी सिनेमा के उन महान गायकों में से हैं, जिनकी आवाज़ ने कई पीढ़ियों को भावविभोर किया है. उनकी आवाज़ में एक खास मिठास थी, जो समय के साथ और भी निखरती गई. उनके जन्म के साथ ही एक अनोखी घटना जुड़ी है जो उनकी बहन श्यामा प्यारी ने अपने एक इन्टरव्यू के दौरान साझा की थी. उन्होंने बताया कि मुकेश के जन्म के समय अचानक सूरज की तेज रोशनी के बीच बादल घिर आए और बारिश होने लगी, जो एक संकेत था कि परिवार में एक महान आत्मा का जन्म हुआ है.

मुकेश के गाये गीत आपको हर जगह सुनने को मिल जायेंगे. टेलीविजन और रेडियो पर उनके गाये बारिश के गीतों की फुहार दिल के तारों को झंकृत कर जाती है. फिर चाहें उनका गाया गीत ‘डम डम डिगा डिगा’ हो, ‘सावन का महीना’ हो,‘पानी रे पानी’ हो, या हो ‘बरखा रानी जरा जमके बरसो’. उनकी आवाज़ में इन सदाबहार गीतों ने बरसात के मौसम को हमेंशा के लिए रूमानी बना दिया.

फिल्मी करियर

मुकेश की करियर की शुरुआत संघर्षपूर्ण रही. गायक के रूप में मुकेश को 1941 में आई फिल्म ‘निर्दोष’ में गाने का मौका मिला, पर सफलता अभी कोसों दूर थी. इसी बीच संगीतकार अनिल बिस्वास ने उन्हें 1945 में फिल्म ‘पहली नज़र’ में एक गीत गाने का मौका दिया. गीत था ‘दिल जलता है तो जलने दे’. इस गीत ने उन्हें रातोंरात शीर्ष पर पहुँचा दिया. इसके बाद तो उन्होंने कई फिल्मों में गाने गाए, जो आज भी लोकप्रिय हैं.

देश ही नहीं बल्कि वदेशों में भी लोकप्रिय गायक

1951 में रिलीज़ फिल्म ‘आवारा’ का मशहूर गीत ‘आवारा हूं या गर्दिश में हूँ’ गाकर मुकेश ने सबको दीवाना बना दिया. उन्होंने मेरा जूता है जापानी, जीना यहाँ मरना यहाँ, चन्दन सा बदन, किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, जिस गली में तेरा घर न हो, जाने चले जाते हैं कहाँ, होठों पे सच्चाई रहती है जैसे अनगिनत सुरीले और कालजयी गीतों की ऐसी बेजोड़ अंतहीन श्रृंखला गढ़ी, जिसे भारत ही नहीं विदेशों में भी खूब सुना और सराहा गया.

मुकेश जब भी गाते दिल से गाते और गीत के भाव की गहराइयों में डूब जाते. उनके गाये गीत "बरखा रानी जरा जम के बरसो" की रिकॉर्डिंग के समय की एक दिलचस्प कहानी है. कहते हैं स्टूडियो में एक बार मुकेश इस गीत की रिकॉर्डिंग कर रहे थे उस वक्त बाहर धूप खिली हुई थी. मगर जैसे ही रिकॉर्डिंग पूरी हुई बाहर जोरदार बारिश होने लगी. ऐसा लगा जैसे मुकेश की आवाज़ बारिश ने सुन ली हो.

मुकेश ने गाया स्टीरियोफोनिक साउंड का पहला गीत

स्टीरियोफोनिक साउंड में साल 1971 में जो पहला गीत रिकार्ड किया गया वो मुकेश की आवाज़ में रिकॉर्ड किया गया ‘तारों में सजके अपने सूरज से, देखो धरती चली मिलने’. बॉलीवुड में अपने पैंतीस साल के करियर में उन्होंने लगभग 900 फ़िल्मी गीत गाये.

मुकेश के गाये गीतों में जीवन के सभी रंग समाहित हैं. जहां उन्होंने दर्द भरे गीतों को खूबसूरती से अपनी आवाज़ में पिरोया, वहीं उनके गाये गीतों में आशा और विश्वास की भावना झलकती है. मुकेश के गाए दिल को छू लेने वाले कई रोमांटिक गीत आज भी अमर हैं. उनका कोई सानी न कभी पहले था और ना ही कभी होगा.

लेजेंड्स नेवर डाई

मुकेश के गीत जितने सरल और मधुर हैं असल ज़िन्दगी में मुकेश भी उतने ही सरल और सहज थे. उनकी आवाज़ ने राज कपूर, दिलीप कुमार, देवानंद जैसे दिग्गज अभिनेताओं की फिल्मों में जान डाली. हिंदी सिने जगत के साथ-साथ मुकेश अंतरराष्ट्रीय स्तर के गायक बने. हिंदी सिनेमा के लिए दिया गया उनका योगदान अनमोल है. उनके गाये गीत सदियों तक यूँ ही गूंजते रहेंगे.

Articles