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रागी की खेती से कमाएं मोटा मुनाफा
News Date:- 2024-04-03
रागी की खेती से कमाएं मोटा मुनाफा
AJATSHATRU

लखनऊ,03 Apr 2024

रागी अफ्रीका और एशिया के सूखे क्षेत्रों में उगाया जाने वाला मोटा अन्न या श्रीअन्न है. इसे मड़ुआ भी कहते हैं. इसकी फसल एक बरस में पक कर तैयार हो जाती है. यह मूल रूप से इथियोपिया के ऊँचे क्षेत्रों में उगने वाला पौधा होता है. रागी को भारत में तकरीबन चार हजार साल पहले लाया गया था। ऊँचे क्षेत्रों में अनुकूलित हो जाने में यह बहुत समर्थ होता है. हिमालय क्षेत्र में यह 2300 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जाता है. इसकी खेती प्रायः तिलहनी या फिर दलहनी फसलों के साथ सहफसली के तौर पर की जाती है.

रागी का मोटे अनाजों की श्रेणी में विशेष स्थान होता है. रागी (Finger Millet) को मड़ुआ, अफ्रीकन रागी, फिंगर बाजरा और लाल बाजरा आदि नामों से भी जाना जाता है. अफ्रीका और एशिया महाद्वीप में रागी की खेती मुख्य फसल के रूप में की जाती है. इसके पौधे करीब एक से डेढ़ मीटर तक की ऊंचाई तक के होते हैं. मडुआ की खेती उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, ओड़िशा, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, झारखंड, आंध्रप्रदेश और बिहार राज्यों में की जाती है.

पोषक तत्व

रागी में अमीनो अम्ल मेथोनाइन पाया जाता है जो स्टार्च की प्रधानता वाले भोज्य पदार्थों में नहीं पाया जाता. प्रति 100 ग्राम के हिसाब से इसका विभाजन इस प्रकार किया जाता हैः-

•       प्रोटीन 7.3 ग्राम

•       वसा 1.3 ग्राम

•       कार्बोहाइड्रेट 72 ग्राम

•       खनिज 2.7 ग्राम

•       कैल्शियम 3.44 ग्राम

•       रेशा 3.6

•       ऊर्जा 328 किलो कैलोरी

रागी से बनने वाले खाद्य पदार्थ

भारत में कर्नाटक, उत्तराखंड और आन्ध्र प्रदेश में रागी का सबसे अधिक उपभोग किया जाता है. इससे मोटी डबल रोटी, डोसा और रोटी बनाई जाती है. इससे रागी मुद्दी बनती है जिसके लिए रागी के आटे को पानी में उबाला जाता है. मिश्रण के गाढ़ा हो जाने पर इसे गोल आकार देते हुए घी लगाकर साम्भर के साथ खाया जाता है. वियतनाम मे इसे प्रसूताओं को दवा के रूप मे दिया जाता है. इससे मदिरा भी बनाई जाती है.

कब और कैसे करें रागी की खेती

रागी की खेती शुष्क मौसम में की जाती है. इसमें सूखे को बर्दाश्त करने की क्षमता के साथ सामान्य जलभराव को बर्दाश्त करने की क्षमता भी होती है.

जलवायु
रागी की खेती के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है. इसके पौधों में सूखा सहन करने की क्षमता होती है. रागी की खेती के लिए 50 से 90 सेमी. वर्षा उपयुक्त होती है. इसमें सामान्य जलभराव को बर्दाश्त करने की क्षमता भी होती है. इसकी खेती ऊँचाई वाले क्षेत्रों में की जाती है.

उपयुक्त मिट्टी
रागी की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है परन्तु कार्बनिक पदार्थों से भरपूर बलुई दोमट मिट्टी बढ़िया मानी जाती है. उचित जलनिकासी वाली काली मिट्टी में इसकी खेती की जा सकती है. इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 5.5 से 8 के बीच होना चाहिए.

खेत की तैयारी
मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर खेत को कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दें ताकि उसमें मौजूद पुराने अवशेष, खरपतवार और कीट नष्ट हो जाएं. इसके बाद आवश्यकतानुसार गोबर की खाद डालकर खेत की जुताई कर पलेवा करें. खेत की ऊपरी सतह सूख जाने के बाद फिर से 2-3 आड़ी-तिरछी गहरी जुताई करे. आखिर में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बनाकर खेत को बिजाई के लिए समतल कर लें.

रागी की उन्नत किस्में

बाजार में रागी की उन्नत प्रजातियां आसानी से मिल जाती हैं. कुछ किस्में ऐसी हैं जो कम समय में अधिक पैदावार देती हैं. जेएनआर-852, जीपीयू-45, चिलिका, जेएनआर-1008, पीइएस-400, वीएल-149, आरएच-374, ई.सी.-4840, निर्मल, पंत रागी-3 (विक्रम) आदि उन्नत किस्में हैं.

बीज की मात्रा और उपचार

बीज की मात्रा बुवाई की विधि पर निर्भर करती है. रागी की बुवाई ड्रिल विधि से करने के लिए 10-12 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की आवश्यकता पड़ेगी. छिड़काव विधि से बोने के लिए 5 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की जरूरत पड़ेगी. बीज को उपचारित करने के लिए थीरम, बाविस्टीन या फिर कैप्टन दवा का उपयोग करना चाहिए.

बुवाई का समय

रागी की बुवाई मई के आखिर से जून तक काभी भी की जा सकती है। कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ रागी की बुवाई जून के बाद की जाती है. इसको जायद के सीजन में भी उगाया जा सकता है.

बीज बुवाई का तरीका

रागी की बुवाई छिड़काव और ड्रिल दोनों विधि से की जा सकती है. छिड़काव विधि से बीज को सीधे खेत में छींट दिया जाता है. उसके बाद बीज को मिट्टी में मिलाने के लिए कल्टीवेटर से दो बार हल्की जुताई कर पाटा लगा दें. रागी की बुवाई मशीनों द्वारा कतारों में की जाती है. बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी एक फीट होनी चाहिए और बीज से बीज की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए.

फसल की सिंचाई

इसकी फसल के लिए अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. अगर वर्षा सही समय पर न हुई तो बुवाई के एक महीने के बाद फसल की सिंचाई करें. पौधों में फूल और दाने आने पर पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है. सामान्यतः 10 से 15 दिन के अंतर पर फसल की सिंचाई करें.

खाद एवं उर्वरक

रागी की फसल के लिए 40 से 45 किग्रा नाइट्रोजन एवं 30-40 किग्रा फॉस्फोरस तथा 20-30 किग्रा पोटाश/हैक्टेयर की दर से जरुरत पड़ती है. सभी खादों का मिश्रण बनाकर बुवाई के समय खेत में डालें. रागी की फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए बुवाई से पहले गोबर की खाद डालें.

खरपतवार नियंत्रण

रागी की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए उचित समय पर निराई-गुड़ाई करते रहें. रागी की बुवाई के करीब 20-25 दिन बाद पहली निराई करें. खरपतवार नियंत्रण के लिए रागी की बुवाई से पहले आइसोप्रोट्यूरॉन या ऑक्सीफ्लोरफेन की उचित मात्रा का छिड़काव करें.

फसल की कटाई

रागी की कटाई उसकी किस्मों पर निर्भर करती है. सामान्यतः तकरीबन 115-120 दिन में फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है. रागी की बालियों को दराती से काट कर ढेर बनाकर धूप में 3-4 दिनों के लिए सुखाएं. अच्छी तरह से सूखने के बाद थ्रेशिंग करें.

रागी/मड़ुआ का भंडारण

एक बार पक कर तैयार हो जाने पर रागी का भंडारण करना बेहद सुरक्षित होता है. इस पर किसी कीट या फफूंद का असर नहीं पड़ता. इस गुण के कारण संसाधनहीन किसानों के लिए यह एक अच्छा विकल्प माना जाता है.

पैदावार और लाभ

रागी की फसल से औसत पैदावार 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है. इसका बाजार भाव करीब 3000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास होता है. इस हिसाब से किसानो की 75 हजार रुपये तक की कमाई हो सकती है.

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